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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

बुधवार, 10 मार्च 2021

अधूरा सपना

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
दूर क्षितिज में बस जाते हैं
जब हम जाते पार चाँद के 
तभी हमें फिर याद आते हैं

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
जीवन से कुछ कह जाते हैं 
सोते-सोते तड़पाते हैं 
जगने पर फिर याद आते हैं 

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
बरबस नयन भिगो जाते हैं 
चाँद पलों में सफ़र मील का 
यादों में हम तय कर जाते 

कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं
कुछ  बिछड़े कुछ मिल जाते हैं 
नए- नये सपने गढ़ते हैं 
कुछ पाते कुछ खो जाते हैं 

चलों आज यह भेद मिटा दें 
कोई है अपना कोई पराया 
मन से ऐसा वहम  हटा दें 

जो सपने हमने पाले थे 
क्यों नहीं उनको आज मिटा दें 
जो मिला हमें वह अपना था 
जो टूट गया वह सपना था।  



 


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