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बुधवार, 16 सितंबर 2020

आत्मीय

अपना सब कुछ तो तुम पर वार दिया
ख़ामोशी को भी साँचें में ढाल दिया 
चलते फिरते इंसान को भी साँचें में ढाल दिया 
तेरे मन को चोट न पंहुचे कभी इसलिए 
हर जहर को अपने मन में ही आत्मसात किया 
मैंने अपने हर सपने को आँसू  के सबनम से सींच दिया 

मैं बिखरी - बिखरी कुछ स्मृतियाँ जोड़ रही हूँ 
चांदनी रात को भी अपनी मुठी में भर रही हूं
ख्वाब से मैं ख्वाब को बुन रही हूँ 
हमारी धड़कनों में जोश बांकी रहे
इसीलिए मैं खुद से ही भाग रही हूँ 

अपना सब कुछ तो तुम पर वार दिया 
ख़ामोशी को भी साँचें में ढाल दिया 
देखते है कितनी ठोकरों के बाद 
हमें मंजिल मिलती है 
गम तो हजार मिले 
देखते है खुशियां
कितने लम्हों  के बाद मिलती हैं। 

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