सुबह से शाम तक हमारी
परीक्षा क्यों लेते हो भगवान
हमेशा तुम पर विश्वास रखा
क्या इसकी सजा देते हो भगवान
हरदम तुम्हे पूजा तुम्हारी अर्चना की
पर हरबार मेरे हाथ पर
प्रसाद के रूप में कोड़े ही बरसाए
तुम्हारे प्रेम की छाया क्या
नटवरलालों को ही मिलती है
तुम्हे पूजनेवाला क्या सिसक - सिसक
कर ही दम तोड़ देता है
उसके अरमान में सूनापन और
आँखों में तुम आँसू ही दे पाते हो
लोग कहते है पत्थर को भी
पूजो तो भगवान मिल जाते है
यहाँ तो पूजते- पूजते
खुद ही पत्थर बन गए है
अब न शेष कोई अरमान है
और न ख्वाहिश ही बांकि है
हाँ आज भी दिल ये चाहता है कि
एक बार मैं हार जाऊ पर
मेरा विश्वास नहीं हारना चाहिए
अपने आप से ज्यादा तुमपर भरोशा रखा है
बस आखिरी बिनती है तुमसे
इस नैया को पार लगाना
चाहे लाख तूफान आये
इसे मझधार में न डुबाना।
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