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गुरुवार, 10 सितंबर 2020

विश्वास



सुबह से शाम तक हमारी
परीक्षा क्यों लेते हो भगवान
हमेशा तुम पर विश्वास रखा 
क्या इसकी सजा देते हो भगवान 
हरदम तुम्हे पूजा तुम्हारी अर्चना की 
पर हरबार मेरे हाथ पर 
प्रसाद के रूप में कोड़े  ही बरसाए
तुम्हारे प्रेम की छाया क्या 
नटवरलालों को ही मिलती है 
तुम्हे पूजनेवाला क्या सिसक - सिसक 
कर ही दम तोड़ देता है 
उसके अरमान में सूनापन और 
आँखों में तुम आँसू ही दे पाते हो 
लोग कहते है पत्थर को भी 
पूजो तो भगवान मिल जाते है  
यहाँ तो पूजते- पूजते 
खुद ही पत्थर बन गए है 
अब न शेष कोई अरमान है 
और न ख्वाहिश ही बांकि  है
हाँ आज भी दिल ये चाहता है कि 
एक बार मैं हार जाऊ पर 
मेरा विश्वास नहीं हारना चाहिए 
अपने आप से ज्यादा तुमपर भरोशा रखा है 
बस आखिरी बिनती है तुमसे 
इस नैया को पार लगाना 
चाहे लाख तूफान आये 
इसे मझधार में न डुबाना।   

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