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शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

शाम ढलने लगी

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
मन मचलने लगा
 ख्वाब के आसमा में , मन विचरने लगा 
गम तो कोई न था , फिर भुला क्या रहे 
राह छूटी  अगर, तो मिटा क्या रहे 
जाम के ही सहारे, हम भुला क्या रहे
जो पिटे गए, नजरे बोझिल हुई 
याद कुछ न रहा , हम बेफिक्र हो गए 

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
छटा मनोहर आसमान की 
विचरण मन करने लगा 
ख्वाब हवा में उरने लगा 
बैठे - बैठे पंख लग गए 
हम मस्ती में उरने लग गए
 शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
हम  मचलने लगे।  


 
 


 


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