मन मचलने लगा
ख्वाब के आसमा में , मन विचरने लगा
गम तो कोई न था , फिर भुला क्या रहे
राह छूटी अगर, तो मिटा क्या रहे
जाम के ही सहारे, हम भुला क्या रहे
जो पिटे गए, नजरे बोझिल हुई
याद कुछ न रहा , हम बेफिक्र हो गए
शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
छटा मनोहर आसमान की
विचरण मन करने लगा
ख्वाब हवा में उरने लगा
बैठे - बैठे पंख लग गए
हम मस्ती में उरने लग गए
शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
हम मचलने लगे।
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