यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

शाम ढलने लगी

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
मन मचलने लगा
 ख्वाब के आसमा में , मन विचरने लगा 
गम तो कोई न था , फिर भुला क्या रहे 
राह छूटी  अगर, तो मिटा क्या रहे 
जाम के ही सहारे, हम भुला क्या रहे
जो पिटे गए, नजरे बोझिल हुई 
याद कुछ न रहा , हम बेफिक्र हो गए 

शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
छटा मनोहर आसमान की 
विचरण मन करने लगा 
ख्वाब हवा में उरने लगा 
बैठे - बैठे पंख लग गए 
हम मस्ती में उरने लग गए
 शाम ढलने लगी , जाम चलने लगी
हम  मचलने लगे।  


 
 


 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें