सब चाहते है मुझे सबको प्रेम है मुझसे
ऐसा मुझे लगने लगा था
कदम दर कदम मैं जिंदगी से
दूर होने लगी थी
कभी खामोश रहकर
तो कभी आसूओं में ही रोने लगी थी
गुमसु म - गुमसु म रहकर भी
दिल को मन ही मन संजोने लगी थी
कई जिंदगिओं की आस बंधी थी मुझसे
पर ना जाने क्यों मैं
अपनी साँसों से ही मैं आस खोने लगी थी
जिंदगी को जीने की चाहत में
शायद मैं मदहोश होने लगी थी
अच्छाई भी यहीं है बुराई भी यहीं है
नफरत से पनपी तन्हाई भी यहीं है
चाहे गलफहमी हो या सच्चाई
जिंदगी की कड़वी सच्चाई भी यही है।
गुमसुम गुमसुम बुराई जिन्दगियों
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
thanks sir
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