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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

गलतफहमी

कुछ गलतफ़हमी सी मुझे होने लगी थी
सब चाहते है मुझे सबको प्रेम है मुझसे
ऐसा मुझे लगने लगा था 
कदम दर कदम मैं जिंदगी से 
दूर होने लगी थी 
कभी खामोश रहकर 
तो कभी आसूओं में ही रोने लगी थी 
गुमसु म - गुमसु म  रहकर भी 
दिल को मन ही मन संजोने लगी थी 
कई जिंदगिओं की आस बंधी थी मुझसे 
पर  ना जाने क्यों मैं 
अपनी साँसों से ही मैं आस खोने लगी थी 
जिंदगी को जीने की चाहत में 
शायद मैं मदहोश होने लगी थी 
अच्छाई भी यहीं है बुराई भी यहीं है 
नफरत से पनपी तन्हाई भी यहीं है 
चाहे गलफहमी हो या सच्चाई 
जिंदगी की  कड़वी सच्चाई भी यही है।  

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