ये प्रांत वीरो से सज़ा है
सब शांत है मन क्रांत है
ये भ्रान्ति है अज्ञान है
जीवन का कैसा अंत है
न कोई इसका प्रान्त है
हर ओर मन आक्रांत है
चारों दिशाएं रो रही
छाई निशा में मौन है
है कहर हर ओर ढा रही
जीवन को है झुलसा रही
कैसी तूफानी रात है
हर ओर भय ही व्याप्त है
जाने जुबां क्यों शांत है
सब दिग दिगंत आक्रांत है
मुरझाई फूलों की कलि
है शांत झुरमुट पेड़ भी
गाय विचरती मौन है
है हक्का-बक्का स्वान भी
है कैसी विपदा आई ये
हर ओर छाई मायूसी
शंका से हम सब देखते
किनसे करे व्यव्हार
किनसे छुपाए मुंह फिरे
कैसा ये दिन दिखलाएगी
हम को कहाँ ये ले जाएगी
ये वक्त ही बतलायेगा
क्या-क्या सबक सिखलाएगी।
सब शांत है मन क्रांत है
ये भ्रान्ति है अज्ञान है
जीवन का कैसा अंत है
न कोई इसका प्रान्त है
हर ओर मन आक्रांत है
चारों दिशाएं रो रही
छाई निशा में मौन है
है कहर हर ओर ढा रही
जीवन को है झुलसा रही
कैसी तूफानी रात है
हर ओर भय ही व्याप्त है
जाने जुबां क्यों शांत है
सब दिग दिगंत आक्रांत है
मुरझाई फूलों की कलि
है शांत झुरमुट पेड़ भी
गाय विचरती मौन है
है हक्का-बक्का स्वान भी
है कैसी विपदा आई ये
हर ओर छाई मायूसी
शंका से हम सब देखते
किनसे करे व्यव्हार
किनसे छुपाए मुंह फिरे
कैसा ये दिन दिखलाएगी
हम को कहाँ ये ले जाएगी
ये वक्त ही बतलायेगा
क्या-क्या सबक सिखलाएगी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपके सहयोग के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!
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