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बुधवार, 20 मई 2020

नियति

करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
जीव जग से यूं बंधा है
छोड़ना बस में नहीं है

जोर नियति पर नहीं है
एक ही तो हक़ मिला है
कर्म करने की सजा है
ज़िन्दगी की हर दवा है

मौत बंधन मुक्त करती
इस जहाँ से पार जाने
का वही एक रास्ता है

करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
काल के हाथों में हम सब 
खेलते है हर घडी 

चाहतो की डोर भी 
अदृश्य बंधन से बंधा है 
मन है विचलित तन है विचलित 
काँपता मन कह रहा है 
किस दिशा ले जाएगी 
ये ज़िन्दगी किसको पता है 

कर्म किसके, कौन इसका भार
कब तक ढो रहा है
बैल कोहलू में जुता है
राह कंकर से पटा है

मानवों के पैर में
ज़ंजीर कुछ ऐसे पड़े
वो चाहकर भी बन्धनों से
मुक्त हो पाता नहीं
सींचता आंसूं ख़ुशी से
रोज़ सपनो को बिखरता देखकर भी
जोड़ने की धुन में अक्सर
भागता ही जा रहा है

हर घडी हर पल मुकद्दर
हाथ में अपने लिए
जूझना ही ज़िन्दगी का
मकसद अपना बन गया है। 

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