करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
जीव जग से यूं बंधा है
छोड़ना बस में नहीं है
जोर नियति पर नहीं है
एक ही तो हक़ मिला है
कर्म करने की सजा है
ज़िन्दगी की हर दवा है
मौत बंधन मुक्त करती
इस जहाँ से पार जाने
का वही एक रास्ता है
करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
कर्म किसके, कौन इसका भार
कब तक ढो रहा है
बैल कोहलू में जुता है
राह कंकर से पटा है
मानवों के पैर में
ज़ंजीर कुछ ऐसे पड़े
वो चाहकर भी बन्धनों से
मुक्त हो पाता नहीं
सींचता आंसूं ख़ुशी से
रोज़ सपनो को बिखरता देखकर भी
जोड़ने की धुन में अक्सर
भागता ही जा रहा है
हर घडी हर पल मुकद्दर
हाथ में अपने लिए
जूझना ही ज़िन्दगी का
मकसद अपना बन गया है।
मोह बंधन में छिपा है
जीव जग से यूं बंधा है
छोड़ना बस में नहीं है
जोर नियति पर नहीं है
एक ही तो हक़ मिला है
कर्म करने की सजा है
ज़िन्दगी की हर दवा है
मौत बंधन मुक्त करती
इस जहाँ से पार जाने
का वही एक रास्ता है
करुण क्रंदन में छिपा है
मोह बंधन में छिपा है
काल के हाथों में हम सब
खेलते है हर घडी
चाहतो की डोर भी
अदृश्य बंधन से बंधा है
मन है विचलित तन है विचलित
काँपता मन कह रहा है
किस दिशा ले जाएगी
ये ज़िन्दगी किसको पता है
कब तक ढो रहा है
बैल कोहलू में जुता है
राह कंकर से पटा है
मानवों के पैर में
ज़ंजीर कुछ ऐसे पड़े
वो चाहकर भी बन्धनों से
मुक्त हो पाता नहीं
सींचता आंसूं ख़ुशी से
रोज़ सपनो को बिखरता देखकर भी
जोड़ने की धुन में अक्सर
भागता ही जा रहा है
हर घडी हर पल मुकद्दर
हाथ में अपने लिए
जूझना ही ज़िन्दगी का
मकसद अपना बन गया है।
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