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गुरुवार, 20 अगस्त 2020

ख्वाब

ख्वाब को तोड़कर नींद से
मैं अब जागने लगी हूँ
लफ्जों की मुझे अब जरूरत नहीं
चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगी हूँ 
परवाह नहीं किसी की 
अब तो मैं अकेले ही 
आगे बढ़ने लगी हूँ 
मैं हूँ तेरा ही प्रतिबिम्ब 
तुम हो कठोर चट्टान की भांति 
तो कैसे मैं कह दूँ कि 
मैं मोम बनने लगी हूँ 
तुम हो अपने जिद्द में माहिर 
तो मैं भी अब 
नित् नए संकल्प गढ़ने लगी हूँ 
मैं थी नींद में वर्षों से 
अब तो जग के रोज चलने लगी हूँ 
जीत सच्चाई की ही होती  है 
बादलों के भी उस पार 
अब स्पस्ट दिखने लगा है 
चाहे रास्ते में मुश्किलें कितनी आये 
मैं भी अपना इरादा 
मजबूत करने लगी हूँ
 आज की बदलती तस्वीरों को देखकर 
शायद मैं भी कुछ - कुछ बदलने लगी हूँ। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. ज़रूरी है स्थितियों के अनुसार स्वयं को बदलना.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका आभार
      उम्मीद करती हूँ आपलोग इसी तरह हौसला बढ़ाते रहेंगे
      साथ ही कभी कोई कमी लगे तो कृपया अपना सलाह भी जरू दे।

      हटाएं