तुम्ही विरह संयोग हो तुम
तुम्ही मिलन आमोद हो तुम
तुम गलत पते पे आ गए हो
यहाँ न तो तुम्हारा कोई अपना है
और न तुम्हे कोई जानता है
ये मेरा घर है यहाँ सब मेरे अपने है
मैंने अपना पूरा बचपन यहीं पे बिताया है
वो अपने नहीं तुम्हारा छलावा था
तुमने जिसे अपना समझा
वो सब एक बस दिखावा था
तुम आहत क्यों हो
जो तुम्हारा था ही नहीं
उसके खोने का गम क्या
तुम्हारा था ही क्या जो तुमने खो दिया
जो यहाँ से मिला था
उसे यहीं पर छोड़ दिया
नफरत हो या प्रेम
सब यहीं से मिला था
बस उसे जी भर कर जी लिया
अब तो अपना काम पूरा हुआ
चलदो यहाँ से अपनी मंजिल तो आगे है
कोई और तुम्हारी प्रतीक्षा में है।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१५-०८-२०२०) को 'लहर-लहर लहराता झण्डा' (चर्चा अंक-३७९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अनीता जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंअच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएंसर आपका खूब - खूब आभार
हटाएंसुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वीणा जी
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