यह ब्लॉग खोजें

Translate

विशिष्ट पोस्ट

सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

शब्द

मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना चाहती  हूँ
आज दिल में हूँ तुम्हारे , होठों तक आना  चाहती हूँ
शब्द से शब्द जोड़कर
अपने दिल में छुपे एहसास को
तुम तक पहुँचाना  चाहती हूँ
मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ
जिंदगी के हर छण को
शब्दों में गढ़ना चाहती हूँ
तुम्हारे माध्यम से मैं वो सब कहना चाहती हूँ
जो आज भी मेरे सीने में दफन है
जो मेरा सपना था , आज मैं उसे पाना चाहती हूँ

मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ
तुम मेरे हो मैं तेरी बोल बनना चाहती हूँ
मैं हूँ कलम , तुम्हे अपना किताब बनाना चाहती हूँ
जिसे मैं जब चाहूँ पढ़ सकूँ
अपने अन्तर्मन में हर वक़्त तुम्हे जी सकूँ

मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ
अपने पूरे जीवन को पन्नों में दर्ज करना चाहती हूँ
जो मिल गया उसे शब्द
और जो न मिला उसे निःशब्द रखना चाहती हूँ
मैं निःशब्द हूँ , शब्द बनना  चाहती हूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें