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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

गिलहरी

सूट पहनकर चली गिलहरी
रिक्शा लेकर घूमने
तभी सामने हाथी दादा 
सूंड झूलाते आ गए 
बोले मुझको लेकर  चलो 
अगले चौराहे तक 

अपना रिक्शा करूँ कबाड़ा 
अगर तुम्हे बैठाऊँ तो 
जान बूझकर क्यों करते हो 
मेरे साथ ठिठोली 

माफ़ करो गुस्ताखी भईया  
कोई और बुलाओ 
जो तुमको बैठा कर भईया 
अपने संग लेकर जाये 


मैं तो बड़ी पतली - दुबली हूँ 
तेरा भार न ढो पाऊँगी 
मैं और मेरा रिक्शा दोनों 
यहीं बिखर के रह जाएंगे 

हाथी दादा चुप चल दिए 
अपना गुस्सा पीकर। 
 

 

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