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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

इंसान

मैंने हरदम फल की तरह ही चख - चख कर
इंसान को पहचाना है
जो ऊपर से मीठे रहते हैं 
अंदर से वे हरदम ही सड़े रहते हैं 

जिनमे है नमक जैसा खारापन 
उनका अन्तर्मन बर्फ सा साफ़ होता है 
जो देखकर हमें रोज मुस्कुराते हैं 
मेरे आगे बढ़ते ही मुझसे चिढ जाते हैं 

क्या कहूं इन्सानों का ये तो 
गिरगिटों से भी ज्यादा रंग बदलते हैं 
आपको जब दुखी देखेंगे 
मन ही मन खुश हो जाते हैं 

पर जब देखते हैं पड़ोसी खुश है 
इनके आँखों से आंसू निकल आता है।  



 


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