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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

बादल

कितना अच्छा होता
मैं बादल बन जाती 
उम्र - घुमर धरती पर आकर 
मैं फिर से प्रलय मचाती 
कहीं पे बाढ़ तो कहीं पे सुखा 
जल -थल -नभ पर छाति 

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती 
धरती माँ कि प्यास बुझाती 
हरियाली फैलाती  
फूल - पत्तियों पर रुक कर मैं 
फिर मोती बन जाती

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती 
गरज - गरज कर सबको डराती 
झम - झम  कर फिर बरस भी  जाती
गर्मी से तपते मौसम में 
मैं फुहार बनकर आती 

कितना अच्छा होता 
मैं बादल बन जाती उमर - घुमर कर 
रोज सवेरे मैं फुहार बरसाती 
हरियाली कि खातिर हरदम 
मैं अमृत बन जाती   

 




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