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पापा

पापा मेरे सपनों का वो प्रतिबिम्ब है  जो हमारे हर सपने को पूरा करते है  हमारी हर जिज्ञासा को पूरा करते है  हमारे लड़खड़ाते कदम को हाथों से संभा...

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

बचपन के दिन

था रिक्त ह्रदय 
मन तृप्त मगन 
जीवन आनंद से था भरा 
कोई गम नहीं 
कुछ कम् नहीं 
सारा जहाँ अपना सा था 
मन में न कोई भेद था 
हर कोई अपना सा लगे 
सुबह हो या शाम 
सब कुछ सपना सा लगे 
मन फूलों सा कोमल था 
मुस्कान सुबह सी ठंढी 
हर वक़्त मगन रहते हम सब 
न पढ़ने की चिंता 
न किसी से आगे जाने की कोई होड़ थी 
कितने सुनहरे थे वो दिन 
वो दोस्त वो  बचपन के दिन।  

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-०-७२०२०) को 'नेह के स्रोत सूखे हुए हैं सभी'(चर्चा अंक-३७५२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनीता जी नमस्ते
      हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !!!

      हटाएं
  2. वाह लाजबाव बचपन की यादों को ताजा कर दी

    जवाब देंहटाएं