मन तृप्त मगन
जीवन आनंद से था भरा
कोई गम नहीं
कुछ कम् नहीं
सारा जहाँ अपना सा था
मन में न कोई भेद था
हर कोई अपना सा लगे
सुबह हो या शाम
सब कुछ सपना सा लगे
मन फूलों सा कोमल था
मुस्कान सुबह सी ठंढी
हर वक़्त मगन रहते हम सब
न पढ़ने की चिंता
न किसी से आगे जाने की कोई होड़ थी
कितने सुनहरे थे वो दिन
वो दोस्त वो बचपन के दिन।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-०-७२०२०) को 'नेह के स्रोत सूखे हुए हैं सभी'(चर्चा अंक-३७५२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अनीता जी नमस्ते
हटाएंहौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !!!
वाह लाजबाव बचपन की यादों को ताजा कर दी
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार
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