मैं तुम्हे देखकर रूका हूँ , कुछ वक़्त देदो
जिंदगी आज है उदास
उसे सँभालने के लिए , कुछ वक़्त देदो
जब मैं छोटा बच्चा था
हरदम हँसता रहता था
हरदम अपने धुन में मगन रहता था
पर आज हंसने के लिए थोड़ा वक़्त देदो
जब मैं काम की तलाश में
इधर - उधर भटक रहा था
कितना सीधा कितना सच्चा था
पर आज सम्भलने के लिए
कुछ और वक़्त देदो
सब कुछ है बिखरा - बिखरा
गम तो हजार है जीवन में
पर उसे गिनने के लिए
कुछ और वक़्त देदो
सुबह होने ही वाली है
पर हमें निखरने के लिए
कुछ और वक़्त देदो। ..........?
वाह ...इतनी आसानी से इतना सच कैसे कह देती हो आप.
जवाब देंहटाएंहमारी अपेक्षा ही हमारे अंदर का भय है जब हम किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं तो हमारा मन भय मुक्त हो जाता है और फिर हम वही लिखते हैं जो हमारा मन कहता है
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