मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है
चाहकर भी मुस्कुरा पाऊँ ना मैं
हर दिन ख़ुशी की चाह में आँखे हमारी नम हुई
बंद आँखों में भी सपने कभी ना तैरने
खोलकर आँखों को कैसे स्वप्न में विचान करूँ
मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है
भोर से मायूसियो ने ढक लिया ऐसे मुझे
शाम ढलकर भी न कोई ख्वाहिशें जागी मेरी
पुरे दिन बोझिल थी आँखें आँसुओं के खोज में
मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है
चाँद तारों की चमक भी आँख में चुभ सी रही।
बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद !!
हटाएंबेहद मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंहृदयस्पर्शी सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंवाह विभा जी, मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है ...शानदार कविता
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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