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मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

चाहत

 मैंने चाहतों की साड़ी उम्मीदे छोड़ दी 

खुश रहने लगा हूँ जबसे उम्मीदे छोड़ दी 

यूँ ज़िन्दगी को अक्सर जिया हूँ मैं 

गरजती बारिशों में भी सूखा रहा हूँ मैं 

काली घटाओ में भी रौशनी की चाह रखता था 

ज़िन्दगी चाहतों से लवरेज़ थी मेरी 

पर तन्हाइयों ने कुछ इस कदर तोड़ दिया 

आज खुशियाँ भी काटने को दौड़ती है 

रंग बिरंगी खुशियों के बीच 

हम कब अकेले हो गए पता ही नहीं चला। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" गुरुवार 07 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. अकेले होके भी जिसने खुश रहना सीख लिया, जानो उसने रब से मिलना सीख लिया

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