मैंने चाहतों की साड़ी उम्मीदे छोड़ दी
खुश रहने लगा हूँ जबसे उम्मीदे छोड़ दी
यूँ ज़िन्दगी को अक्सर जिया हूँ मैं
गरजती बारिशों में भी सूखा रहा हूँ मैं
काली घटाओ में भी रौशनी की चाह रखता था
ज़िन्दगी चाहतों से लवरेज़ थी मेरी
पर तन्हाइयों ने कुछ इस कदर तोड़ दिया
आज खुशियाँ भी काटने को दौड़ती है
रंग बिरंगी खुशियों के बीच
हम कब अकेले हो गए पता ही नहीं चला।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" गुरुवार 07 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंअकेले होके भी जिसने खुश रहना सीख लिया, जानो उसने रब से मिलना सीख लिया
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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