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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

सोमवार, 20 जुलाई 2020

मायका

मायके से मैं चली 
चाँद अरमानों को लेकर 
सपना घर बसाने का 
आँचल में संजोकर 
बचपन की यादों को 
आँखों में प्रेम की छवि 
दिल में ढेरो अरमान लेकर 
हाथो में मेहंदी थी 
पैरो में पाजेब था 
नए जीवन की कल्पना से 
मन में खुशियां अपार थी 
रंग बिरंगे ख्वाबों के संग 
जीवन की सुरुआत हुई 
इस शफर में पता नहीं 
अपना वो मायका 
पता नहीं कब खो गया 
पता ही नहीं चला 
मैं कब मायके से 
ससुराल की हो गई।  

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