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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

धैर्य

बीती ताहि बिसार दे
आगे की सुधि लेओ
यश-अपयश दोनों मिला 
जैसा था विधि लेख 

सारे अपने दूर हुए 
हम जा बेस गैरों के बिच 
सारे अपयश भूलकर 
जाके बेस परदेश 

नया देश था नए लोग थे 
रहे थी अंजान हमारी 
ना वो जाने ना मैं जानूं 
फिर भि सब अपना-अपना था 

पर जानें गंतब्य में कितनी
उलझन हमें और मिलनी थी 
कितने यश कितने अपयश का 
हिस्सा हमें और बनना था 

रोज नए उलझन को लेकर 
नई कसौटी पर चढ़ना था 
लक्ष्य दूर था कठिन डगर थी 
जीवट लेकर चलना था 

यश- अपयश के साथ बिठाना 
तालमेल हमने सिखा 
कठिन घड़ी के कठिन पलों को 
जीवट से हमने काटा।  
 


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