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बुधवार, 7 जुलाई 2021

वो रात

जब दिन में ही हर ओर क्रंदन है
तो वो रात कितनी खौफनाक होगी
हर गली सूनी हर घर में अँधेरा छाया 
दिन खाने को दौरता है तो रात काटे नहीं कटती 

हर ओर जख्म के ही दाग बिखरे हैं 
वो रात न जानें कहां गुम हो गई 
जब हम चाँद तारों से बातें करते थे 
हर ओर ख़ुशी और सुकून था 
जीवन की आशा थी प्यार की परिभाषा थी 

आज तो बस काली रात कि छाया है 
दम तोड़ते रिश्तों की रूदन है 
आंखों में आंसू और ह्रदय में चुभन है 
हम खामोश हैं पर सवाल अनगिनत है 

घर-घर में चीख - पुकार है 
हर ओर सन्नाटा पसरा है 
ना तो खुशियों से भरा वो दिन हैं 
ना प्रेम वर्षाती वो रातें 

अपनों के विरह में सब कूछ  बिखरा-बिखरा है 
जीवन के जंग में कोई जीत गया 
तो कोई हारकर बैठा है . 

10 टिप्‍पणियां:

  1. अपनों के विरह में सब कूछ बिखरा-बिखरा है
    जीवन के जंग में कोई जीत गया
    तो कोई हारकर बैठा है . ...
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०९-०७-२०२१) को
    'माटी'(चर्चा अंक-४१२१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनीता जी आपका बहुत-बहुत आभार. ऐसे ही हमारा हौसला बढ़ाते रहिएगा. कभी लेखनी में कोई त्रुटी भी हो तो आपसे आग्रह है कि जरूर बताएं हमें ख़ुशी होगी.

      हटाएं
  3. घर-घर में चीख - पुकार है
    हर ओर सन्नाटा पसरा है
    ना तो खुशियों से भरा वो दिन हैं
    ना प्रेम वर्षाती वो रातें

    फिर भी उम्मींद है सुबह जरूर आयेगी,हृदयस्पर्शी सृजन....

    जवाब देंहटाएं