तो वो रात कितनी खौफनाक होगी
हर गली सूनी हर घर में अँधेरा छाया
दिन खाने को दौरता है तो रात काटे नहीं कटती
हर ओर जख्म के ही दाग बिखरे हैं
वो रात न जानें कहां गुम हो गई
जब हम चाँद तारों से बातें करते थे
हर ओर ख़ुशी और सुकून था
जीवन की आशा थी प्यार की परिभाषा थी
आज तो बस काली रात कि छाया है
दम तोड़ते रिश्तों की रूदन है
आंखों में आंसू और ह्रदय में चुभन है
हम खामोश हैं पर सवाल अनगिनत है
घर-घर में चीख - पुकार है
हर ओर सन्नाटा पसरा है
ना तो खुशियों से भरा वो दिन हैं
ना प्रेम वर्षाती वो रातें
अपनों के विरह में सब कूछ बिखरा-बिखरा है
जीवन के जंग में कोई जीत गया
तो कोई हारकर बैठा है .
अपनों के विरह में सब कूछ बिखरा-बिखरा है
जवाब देंहटाएंजीवन के जंग में कोई जीत गया
तो कोई हारकर बैठा है . ...
बहुत सुंदर।
आपका बहुत-भुत आभार
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०९-०७-२०२१) को
'माटी'(चर्चा अंक-४१२१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी आपका बहुत-बहुत आभार. ऐसे ही हमारा हौसला बढ़ाते रहिएगा. कभी लेखनी में कोई त्रुटी भी हो तो आपसे आग्रह है कि जरूर बताएं हमें ख़ुशी होगी.
हटाएंवाह!बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंआपका खूब-खूब आभार
हटाएंघर-घर में चीख - पुकार है
जवाब देंहटाएंहर ओर सन्नाटा पसरा है
ना तो खुशियों से भरा वो दिन हैं
ना प्रेम वर्षाती वो रातें
फिर भी उम्मींद है सुबह जरूर आयेगी,हृदयस्पर्शी सृजन....
आपका खूब-खूब आभार
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंthanks
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