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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

बंधन

बहुत सह लिया नहीं सहेंगे अब कोई बंधन
जीवन है उन्मुक्त हमारा मन स्वछंद पवन

खाते है सौगंध धरा की 
विचलित कभी ना होंगे हम 

जीवन की हर घड़ी संजोकर 
धैर्य और साहस के बलपर 

कदम-कदम पर ठोकर खाकर 
परखा है जीवन को हमने

बहुत सह लिया नहीं सहेंगे अब कोई बंधन
प्यार हमारा देखा था अब देखोगे दम 

बहुत सभ्यता की बाते की 
अब हुंकार भरेंगे हम 

बहुत खा लिया पीठ पर  खंजर 
अब  जवाब की  बारी है 

गिन-गिन कर हर जख्म की कीमत 
लेकर चैन हमें आएगा 

सबकी सुनते रहे आजतक 
अब मेरी  सुननी होगी 

है अखंड यह भारत मेरा 
खंडित कभी न होने देंगे .    


2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर।🌼
    अखंड भारत राजनीतिक नही एक सांस्कृतिक संकल्पना है।
    शत्रु सब जहां हो विरुद्ध आसमान हो लड़ेंगे तब तक जब तक शरीर में ये प्राण है। जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है...!

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