उलझन सुलझाऊँ मै कैसे
अपने मन की बताऊ मै कैसे
दिल चाहता है क्या
सबको समझाऊं मै कैसे
वक्त है कठिन दौर का
गुज़र रहा हर रिश्ता
नाज़ुक दौरे से
गांठ हर रिश्ते में इतना
कि उसे सुलझाऊँ मै कैसे
हृदय में पीड़ा अपार है
खुशियों की जगह घृणा ने ली है
चाहत पर भारी नफरत की सवारी
विश्वास ही रिश्ते की डोर है
इन सबको समझाऊं मै कैसे
इस काली रात की
कोई तो सुबह आएगी
नफरत भरे दिल में
फिर से खुशियां भर जाएगी