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पापा

पापा मेरे सपनों का वो प्रतिबिम्ब है  जो हमारे हर सपने को पूरा करते है  हमारी हर जिज्ञासा को पूरा करते है  हमारे लड़खड़ाते कदम को हाथों से संभा...

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

उलझन

उलझन सुलझाऊँ मै कैसे 

अपने मन की बताऊ मै कैसे 

दिल चाहता है क्या 

सबको समझाऊं मै कैसे 


वक्त है कठिन दौर का 

गुज़र रहा हर रिश्ता 

नाज़ुक दौरे से 

गांठ हर रिश्ते में इतना 

कि उसे सुलझाऊँ मै कैसे 


हृदय में पीड़ा अपार है 

खुशियों की जगह घृणा ने ली है 

चाहत पर भारी नफरत की सवारी 

विश्वास ही रिश्ते की डोर है 

इन सबको समझाऊं मै कैसे 


इस काली रात की

कोई तो सुबह आएगी 

नफरत भरे दिल में 

फिर से खुशियां भर जाएगी 

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

माँ

माँ छोड़ चली उस लोक चली 

जिससे नहीं लौटता कोई कभी 

हमसे अपना मुँह मोड़ चली 

ममता का दामन छोड़ चली 

कुछ याद मेरे दिल में दे कर 

कुछ दर्द में हमको छोड़ चली 

धुंधली तस्वीर बनाती हूँ 

मन ही मन में खो जाती हूँ 

खुद से खुद को समझाती हूँ 

जो आता है वो जाता है 

यह जीवन क्रम सिखलाता है 

अब दृश्य सभी सपने बनकर 

आँखों के आगे मंडराते 

माँ का हँसता चेहरा ऐसे 

जैसे कुछ कहना चाह रही 

माँ छोड़ चली उस लोक चली 

जिससे नहीं लौटता कोई कभी।