माँ छोड़ चली उस लोक चली
जिससे नहीं लौटता कोई कभी
हमसे अपना मुँह मोड़ चली
ममता का दामन छोड़ चली
कुछ याद मेरे दिल में दे कर
कुछ दर्द में हमको छोड़ चली
धुंधली तस्वीर बनाती हूँ
मन ही मन में खो जाती हूँ
खुद से खुद को समझाती हूँ
जो आता है वो जाता है
यह जीवन क्रम सिखलाता है
अब दृश्य सभी सपने बनकर
आँखों के आगे मंडराते
माँ का हँसता चेहरा ऐसे
जैसे कुछ कहना चाह रही
माँ छोड़ चली उस लोक चली
जिससे नहीं लौटता कोई कभी।