रात कली कोई ख्वाब में आई
और गले का हार हुई
हँसता हुआ था उसका चेहरा
आँखों में कोई रंग था गहरा
होठ गुलाबी, आँख शराबी
चाल में मादकता झलकी थी
जब मैं सुबह को नींद से जागा
खोया - खोया खुद को पाया
थका - थका सा मन बोझिल था
कहाँ गई वो हुस्न की मालिका
जिससे आँखें चार हुई थी
काश वो मेरे सामने होती
कुछ अपने जज़्बात सुनाता
नए - नए मैं गीत बनाता
शायर बन उसको बहलाता।