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शनिवार, 20 जनवरी 2018

जीवन रण

जीवन के रण में काँटे थे
हर ओर निराशा पसरी थी
गमगीन निगाहे घूर रही
सबके अधिकार का रोना है
हो गई मित्रता उलझन से
कुछ मिला न हमको किस्मत से
हर रोज़ नई उलझन
हर कदम चुनौती भरा मिला
सौ बार गिरे, सौ बार उठे
हर बार कदम कुछ और चले
कुछ खास मिले, कुछ बिछड़ गए
कुछ ने तो पत्थर भी मारे
पीकर अपमान के घूँट सभी
जीवन पथ पर कुछ और चले
क्या कोई अंत मिलेगा इसका
जीवन के रण में शांत खड़े
यह सोच-सोच हम ठिठक गए
कोई तो छोड़ मिलेगा
कोई तो मोड़ मिलेगा
है कैसा कसूर ये मेरा
कि तुमने भी मेरी ही खातिर
सारे उलझन समेट है रखे
मैं कैसे वहन करूँ इन सबको
कैसे सहन करूँ मैं
जीवन के दुर्गम पथ पर
कैसे निर्वहन करूँ मैं
मेरी जीवन की खातिर भी तो
तुमने कुछ सोचा होगा
काटों के चुभने से जो जख्म लगे है
उन ज़ख्मो की खातिर
कोई तो मरहम होगा
हर बार हारना ही क्या
जीवन का लक्ष्य है मेरा
मेरी मेहनत का मुझको
कुछ तो परिणाम मिलेगा
है कितने किस्से तेरे
जीवन को स्वर्ग बनाने की
पर मेरी विनती से तुमको
कोई फर्क न पड़ता
कहते है
भगवान् हमारे साथ सदा ही होते
पर मेरी विनती भी उनको
कभी न पिघला पाई
मैं जीवन के रण में उनको
हर दम ढूंढा करती
पर मेरी कोशिश में  मुझको
खानी मूंह की होती
फिर भी जीवन के रण में
है आगे बढ़ते रहना
हर मुश्किल के बाद
कदम दर कदम हमें हैं बढ़ना.

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