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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

एक कदम

बस एक कदम तुम और चलो
मंजिल के पास खड़े हो
थोड़ी हिम्मत और साहस से
तुम लक्ष्य भेद सकते हो

यह लक्ष्य हमारा मृगमरीचिका बनकर क्यों आया है
बरसों से है कदम हमारे एक ताल पर चलते
फिर भी मेरा लक्ष्य आज तक
नज़र मुझे नही आया

हर कोशिश बेकार हुई
हर लक्ष्य हमारा छूटा
मेहनतकस और खुद्दारी का
दंभ हमारा टूटा

मन के कोनों में बैठी है
रूह कापती मेरी
क्या ये मेरा जीवन मुझको
ठोकर ही मारेगा

कभी ख़ुशी की दो बूंद से
मेरा मिलन न होगा
सत्य तड़पता रह जाएगा
झूठा मौज मनाएगा
रात अंधेरा छाया ऐसा

शायद दिन नहीं आएगा

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