बस एक कदम तुम और चलो
मंजिल के पास खड़े हो
थोड़ी हिम्मत और साहस
से
तुम लक्ष्य भेद सकते
हो
यह लक्ष्य हमारा
मृगमरीचिका बनकर क्यों आया है
बरसों से है कदम
हमारे एक ताल पर चलते
फिर भी मेरा लक्ष्य
आज तक
नज़र मुझे नही आया
हर कोशिश बेकार हुई
हर लक्ष्य हमारा
छूटा
मेहनतकस और खुद्दारी
का
दंभ हमारा टूटा
मन के कोनों में
बैठी है
रूह कापती मेरी
क्या ये मेरा जीवन
मुझको
ठोकर ही मारेगा
कभी ख़ुशी की दो बूंद
से
मेरा मिलन न होगा
सत्य तड़पता रह जाएगा
झूठा मौज मनाएगा
रात अंधेरा छाया ऐसा
शायद दिन नहीं आएगा
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