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मंगलवार, 21 अगस्त 2018

सरल सुगम मेरी रचना है

सरल सुगम मेरी रचना है
जीवन तल पर यह सपना है
मन मंदिर सुन्दर सपना है
जीवन ज्योति जलाये रखना

सरल सुगम मेरी रचना है
दीपक-सा जीवन जलता है 
फिर कुछ सुन्दरतम लिखता  है 
कलियों-सी कोमलता मन में 
पुष्प की भाँति खिला है चेहरा 

सरल सुगम मेरी रचना है 
हर उलझन का ओढ़ के चादर 
निर्मल मन फिर कुछ लिखता है 
जीवन क्रम की डोर है उलझी 
लेखनी अपनी सरल सुगम है 

सरल सुगम मेरी रचना है 
हर पल उलझन आती है 
लेखनी बरबस मुस्काती है 
अब क्या कलम टिका पाओगे 
मन की दुविधा रच पाओगे 

सरल सुगम मेरी रचना है 
है क्या कलम में इतनी ताकत 
हर सच्चाई लिख पाओगे 
कठिन डगर है मुश्किल पल है 
वक्त पर इसका ज़ोर नहीं है 
है स्वक्छंद कलम अब अपनी 
हर पल को अब लिख डालेंगे।

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