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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

लम्हा

यूँ सबके सामने आसूओं को छलकाया न करो
दिल के दर्द यूँ सरेआम दिखाया मत करो
गम हज़ार है अपनी ज़िन्दगी में
पर लोगों को अपने पर
तरस खाना का मौका मत दीजिये
ज़िन्दगी का हर लम्हा कीमती है
इसकी कीमत सिर्फ गम से न आंकिए
खुशियाँ हज़ार आकर चली जाती है
हम कुछ नही सीखते
पर गम का एक लम्हा ही
कई सबक दे जाता है
जहाँ दिल से दिल न मिले
वह शब्दों को जाया न कीजिये
शब्द प्रेम में खुशबु, दर्द में मरहम तो
लड़ाई में वाण से भी तीक्ष्ण है
शब्दों के मायाजाल में
खुद को न धकेलिए
आज इस लम्हे में सब तन्हा हैं
शब्द की तन्हाई को कुछ कम न आकिये.

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