है तुम्हारे हवाले वतन साथियों
कर गया कोई हमें नामजद साथियों
सांस् अटकी यहां प्रेम से साथियों
कर हवाले तुम्हारे वतन साथियों
वक़्त मुश्किल कटा हाथ सबका छुटा
हो गए अजनबी हम तो अब साथियों
कर चले हम फिदा जानतन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
वतन की शान बनाए रखना
मिटना पड़े तो मिटों साथियों
देश झुकने न देना कभी साथियों
देश मिटने न देना कभी साथियों
खून से सींच कर जो आजादी मिली
मान उसका हमेशा करों साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
कर चले हम फिदा जानतन साथियों.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 02 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयशोदा जी आपका बहूत-बहूत आभार
हटाएं2 अक्टूबर के अवसर पर सार्थक प्रस्तुति के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंआपका बहूत-बहूत आभार
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