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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

बुधवार, 9 मार्च 2022

पंख लगा दो

मुझको कोई पंख लगा दो
मैं उड़  जाऊ दूर गगन में 
घूम फिर खुशियों की झोली 
मैं भरकर सब साथ ले आऊ 

देखो चंचल हवा सलोना 
चिड़िया कलरव करती प्यारी 
दूर गगन में सूरज दादा 
मंद-मंद मुस्काते रहते 

देखो पार्क में झूलते बच्चे 
दादा-दादी घूम रहे हैं 
माताएं बैठी मुस्काती 
सपनों को  है पंख लगाती 

अलग अलग टोली में देखो 
अलग अलग चेहरों के रंग 
कोई झूम रहा खुशियों में 
कोई बैठा मौन साध कर 


 

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

साँझ ढले

जब साँझ के प्रहार में कुछ याद आ रहा था
वो याद धुंधला सा मुझको बता रहा था
था घर कोई हमारा मुझको दिखा रहा था 
अपनों कि याद जिसमे धुंधली सी हो गई थी 
तन्हा खड़ी अकेली मैं मौन हो चली थी 
किससे लडूं मैं किसको अनदेखा कर चलूँ 
कहने को सब है अपने  बेगानों की झलक में 
उलझन के बीच मेरी ख़ामोशी कह रही है 
थे तब भी तुम अकेले हो आज भी अकेले 
है फर्क सिर्फ इतना तब भीड़ में खड़े थे 
अब तन्हा हो चले हो .