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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

बुधवार, 5 मार्च 2025

प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों 

है कठिन बहुत पीड़ा सहना 

इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा 

निःशब्द अश्रु धारा बनकर 

मन की पीड़ा बह निकली तब 

है शब्द कहाँ कुछ कहने को 

धीरज धरने का धैर्य कहाँ 

अपने बस में कुछ आज नहीं 

मन को कैसे बहलाऊँ मै

कैसे समझाऊं तेरे बिन 

जीवन पथ पर बढ़ जाऊँ मै

तेरा कुढ़ना तेरा चिढ़ना 

सब आज मुझे तड़पाता है 

कहता है दिल कोई बात नहीं 

तुम लौट के फिर आ जाओ ही 

हम ऐसे ही जी लेते जैसे जीते थे अब तक 

कोई गिला कोई है शिकवा 

है आज नहीं मेरा तुमसे 

वो सुबह शाम वो रात कहाँ 

सब सुना - सुना आज यहाँ

मैं भूल गया जीना तेरे बिन 

हँसना और रोना तेरे बिन। 

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

उलझन

उलझन सुलझाऊँ मै कैसे 

अपने मन की बताऊ मै कैसे 

दिल चाहता है क्या 

सबको समझाऊं मै कैसे 


वक्त है कठिन दौर का 

गुज़र रहा हर रिश्ता 

नाज़ुक दौरे से 

गांठ हर रिश्ते में इतना 

कि उसे सुलझाऊँ मै कैसे 


हृदय में पीड़ा अपार है 

खुशियों की जगह घृणा ने ली है 

चाहत पर भारी नफरत की सवारी 

विश्वास ही रिश्ते की डोर है 

इन सबको समझाऊं मै कैसे 


इस काली रात की

कोई तो सुबह आएगी 

नफरत भरे दिल में 

फिर से खुशियां भर जाएगी 

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

माँ

माँ छोड़ चली उस लोक चली 

जिससे नहीं लौटता कोई कभी 

हमसे अपना मुँह मोड़ चली 

ममता का दामन छोड़ चली 

कुछ याद मेरे दिल में दे कर 

कुछ दर्द में हमको छोड़ चली 

धुंधली तस्वीर बनाती हूँ 

मन ही मन में खो जाती हूँ 

खुद से खुद को समझाती हूँ 

जो आता है वो जाता है 

यह जीवन क्रम सिखलाता है 

अब दृश्य सभी सपने बनकर 

आँखों के आगे मंडराते 

माँ का हँसता चेहरा ऐसे 

जैसे कुछ कहना चाह रही 

माँ छोड़ चली उस लोक चली 

जिससे नहीं लौटता कोई कभी। 

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

स्वभाव

 स्वभाव अपना इतना कोमल था 

कि सब अपने - अपने से लगे 

मन में चीनी सी मिठास थी 

तो स्वभाव में गुड़ सी कोमलता 

पर इस रुखरे संसार ने सब बेकार कर दिया 

हर पग पर नई चोट खाई 

हर ठोकर पर अरमान टूटे 

हर रिश्ते ने तोहफ़े में कटुता दी 

हर रिश्ता चोट दे कर इतराया 

किसी ने बदकिस्मत तो किसी ने निकम्मा बताया 

किसी ने भिखमंगा तो किसी ने चोर तक ठहराया 

हद तो तब हो गयी जब 

जिस घर को अरमान से सजाया 

उसी घर ने घर तोड़ने का इलज़ाम हम पे लगाया 

उस दिन वाकई अपने अंदर कुछ टूट सा गया 

कुछ बिखर सा गया 

बार - बार अपने आप से सवाल करते रहे 

क्या रिश्ता इसी का नाम है 

पर इस कोमल मन को फिर भी समझ न आया 

कोई तो अपना होगा 

कोई विश्वास करेगा 

जब वक्त हमारा होगा 

सब कोई अपना होगा 

सबको सच्चाई दिखेगा 

पर ऐसा क्या कभी होगा 

जब सब कुछ अच्छा होगा?

बुधवार, 8 जनवरी 2025

अभाव

अभाव, जिसका कोई भाव नहीं 

ऐसा ही है अपना जीवन 

पिता से प्यार तो 

दादी का अभाव मिला 

घर सुन्दर 

उसमे प्यार का अभाव मिला 

रिश्ते खूब मिले 

पर प्रशंसा का अभाव मिला 

नाम तो खूब मिला 

पर अर्थ का अभाव मिला 

चलते रहे निरंतर 

पर मुकाम का अभाव मिला 

काम अच्छे - अच्छे करे 

पर कामयाबी का अभाव मिला 

मिला सबकुछ 

पर सुकून का अभाव मिला । 

सोमवार, 6 जनवरी 2025

बदलाव

जीवन के हर मोड़ पे देखो बदलाव है आता 

कभी ख़ुशी तो कभी गमो का दे उपहार वो जाता 

कभी धुप तो कभी छाँव है 

कभी बसंत का साया 

राहों में कंकड़ बिखरे है 

सरपट दौड़ रही है गाड़ी 

ठोकर खाने का खतरा है 

गिरकर उठना उठकर गिरना 

है जीवन की माया 

दुःख - सुख की यादे ही तो है 

जीवन की एक माला 

वक्त बदलता है हम सबको 

कभी वक्त को बदलो 

फिर देखो जीवन में कितना 

सुखद - सुकून है आता। 

शनिवार, 4 जनवरी 2025

आओ चले

आओ चले 

मिलकर हम सब 

चलो हँसने की 

हम वजह ढूंढते है 

अपनी - अपनी सी लगे 

वो जगह ढूंढते है 

जहाँ सबकुछ हो हमारा 

वो सतह ढूंढते है 

जो खुल जाये हमसे 

वो गिरह ढूंढते है 

ज़िन्दगी में नई 

एक सुबह ढूंढते है 

प्यार से हो बनी 

गर्मजोशी हो जिसमे 

अपनों का ऐसा 

शहर ढूंढते हो 

जहाँ न हो कोई भेदभाव 

छल - कपट से दूर चलो 

हम मिलकर अमन ढूंढते है।