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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

सपने

आँखों में सपने थे 

ढेरो अरमान थे दिल में 

कुछ अलग करने की 

हमने भी ठानी थी 

सपने बड़े बड़े थे 

पर साधन बहुत सीमित थे 

मंज़िल आँखों के सामने थी 

पर रास्ता बड़ा कठिन था 

हमारे अरमानो का 

कोई सहयोगी न था 

हर ओर विरोध के ही स्वर थे 

किसी को भरोसा न था हम पर 

परिस्थितियाँ भी हमसे 

तूफ़ान की तरह टकराते थे 

ग़म का तो ऐसा था 

जैसे हमसे प्यार ही हो गया हो 

चुनातियाँ भरपूर थी 

वक्त हाथों से फिसलता जा रहा था 

पर हिम्मत अभी भी बाकी थी 

धैर्य टूट सा रहा था 

लेकिन मुझे फिर भी 

किसी करिश्मे की उम्मीद थी 

और ऐसा ही हुआ 

जब सबकुछ चारो तरफ 

टूट सा रहा था 

मेरे सपने आकार ले रहे थे 

मैं ज़िन्दगी में वापसी कर रही थी 

सबकुछ पटरी पर आ गया 

हाँ कठिनाइयाँ तो ज़रूर आयी पर 

सफलता ने हमारे कदम चूमे 

और मेरा वो सपना जो 

मैंने बचपन में देखा था 

धीरे - धीरे पूरा हो रहा है। 

मंगलवार, 23 सितंबर 2025

मेरे बच्चों

मेरे बच्चों पढ़ते जाओ 

आगे -आगे बढ़ते जाओ 

विद्या का वरदान मिलेगा 

गुरु से विद्या दान मिलेगा 

कदम - कदम पर साथ मिलेगा 

गुरु का सर पर हाथ मिलेगा 

आसमान पर चढ़ते जाओ 

आगे -आगे बढ़ते जाओ 

खुशियों का संसार बसाओ 

मेरे बच्चों पढ़ते जाओ

आगे -आगे बढ़ते जाओ। 

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली 

ए पहाड़ के आँचल 

हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल 

कभी दूर तो कभी पास ए 

करते रहे ठिठोली 

भोर - सांझ ये आते जाते 

होठों पर खुशियाँ दे जाते 

दिन ढलते ही झम - झम करके 

खूब बरसते है ये बादल 

गड़ - गड़ करके झड़ - झड़ करके 

धाराएँ बहती जाती है 

देख - देख हम खुश होते है 

यहां का मौसम कितना प्यारा 

पर पहाड़ के वासिंदों को 

होती बहुत कठिनाई इससे। 

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

बैठे - बैठे

एक दिन बैठे - बैठे यूँ ही सोचती रही 

क्या पाया क्या खोया हमने 

कुछ मिले नए कुछ बिछड़े हमसे 

कुछ शोहरत कुछ गुमनामी में 

जीवन दिया ए काट 

ना नींद पूरी हुई 

और ना ही ख्वाब 

वक्त ने हरदम कहा 

सब्र थोड़ा रख 

वक्त से हमको शिकायत 

कुछ शिकायत वक्त को भी 

धीरे - धीरे चलता रहा 

मंज़िल ज़रूर मिलेगी 

रस्ते कठिन भी है तो

खुशियां मिलेगी एक दिन 

वो दिन भी आएगा जब 

खुद के ख्यालो में ही 

खुद को याद कर के 

आ जाएगी हँसी, जीवन को याद करके। 

रविवार, 13 जुलाई 2025

पापा

पापा मेरे सपनों का वो प्रतिबिम्ब है 

जो हमारे हर सपने को पूरा करते है 

हमारी हर जिज्ञासा को पूरा करते है 

हमारे लड़खड़ाते कदम को हाथों से संभालते है 

गोद में लेकर हमें बाहर का नज़ारा दिखाते है 

हमारे हर सवाल का जवाब बड़ी मासूमियत से देते है 

अब तो पापा माँ का भी आधा फ़र्ज़ निभाते है 

लोड़ी सुना कर हमें सुलाते भी है 

मम्मी की जगह बच्चों को 

नींद में भी पापा ही याद आते है

पापा आपके ढ़ेर सारे प्यार के लिए 

आपको ढ़ेर सारा धन्यवाद। 

सोमवार, 30 जून 2025

बचपन

बच्चों के बचपन में देखो कितनी 

भागम - भाग है 

हुआ सवेरा मम्मी - पापा कहते 

जल्दी कर लो बेटा 

जग बदला जग रित भी बदले 

माँ की आँचल के संग - संग 

ममता की वो छाँव भी बदली 

दादी की सब कथा - कहानी 

कहने की तरकीब भी बदली 

घर आँगन की किलकारी अब 

सामूहिक संसार में बदली

उस जग में भी एक यशोदा

और थे उनके एक कन्हैया 

आज कन्हैया हर घर में है 

प्यार करे जिनको माँ यशोदा। 

शनिवार, 28 जून 2025

परछाई

माँ तुम मुझको आज दिला दो 

सपनो वाली मेरी गुड़िया 

वो मुझको सुन्दर लगती है 

मेरे संग - संग वो हंसती है 

मै जो गाऊं वो भी गाए 

ऊछल - कूद हमको बहलाये 

वो नन्ही प्यारी सी गुड़िया 

मेरे मन को हर दम भाए 

मेरी गुड़िया वो तुम ही हो 

है वो तेरा ही प्रतिबिम्ब 

जब भी तुम शीशा में देखो 

खुद को खुद के ही संग पाओ 

कहाँ से लाऊँ मैं वो गुड़िया 

तुमको कैसे मैं समझाऊं 

माँ तुम बुद्धू बन जाती हो 

मुझको भी तुम बहकाती हो 

मेरी प्यारी गुड़िया मुझसे 

बार - बार क्यों छुप जाती है 

माँ तुम उसको पास बुलाओ 

क्यों तुमसे वो डर जाती है।