जन्म से संसार में
सृजन करने को है आई
अर्पण ही स्वभाव उसका
दर्पण में है ढालना
कोई कमी रह जाए ना
ढालना सांचे में खुदको
हर नयन से सिख लेती
हर नयन में ढूंढती
तस्वीर मेरी कौन-सी है
जो कभी दर्पण में देखा
या कभी जग ने दिखाया
माँ ने हमको क्या सिखाया
और दुनिया ने बताया
तू नहीं है बिटिया रानी
बोझ है तू इस धरा पर
है नहीं चाहत तेरी कोई
हो नहीं आहट तेरी कोई
मेरी ही परछाई बनकर
तू सदा रह जाएगी
हमने चाहा तो दिखाया
हमने चाहा तो छिपाया
हमने चाहा तो सताया
तुम को आगे रखना भी
हिस्सा मेरी नीतियों का
कब तक छदम का जंग लड़ोगे
हम पर कुठारा घात करोगे
हम बने है ऐसी मिट्टी के
लाख़ जतन कर लोगे फिर भी
हमें न तुम तोड़ पाओगे
स्त्री अमरत्व का नाम है
स्त्री प्रेम का प्रतीक है
स्त्री दया का सागर है
स्त्री जीवन में खुशियाँ है
स्त्री चेहरे की मुस्कान है
स्त्री निर्मल और पवित्र है
इसे दिल से महसूस तो करो
जीवन परिपूर्ण हो जाएगा
स्त्री माँ,बहन,बेटी ही नहीं
हर घर में पूजी जाने वाली लक्ष्मी भी है
इसकी क़द्र करके तो देखो
ज़िन्दगी जन्नत बन जाएगी.
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