मैं पंछी हूँ, आकाश नहीं
जीवन रण में अनजान नहीं
मेरी सोच नयी, ये बात अलग
हैं अपनों की पहचान मुझे
मैं बोलती कम हूँ पर नादान नहीं
मैं जानती हूँ, सब जानते है मुझे
दूर रहकर भी पहचानते है मुझे
पर गिला सबको है मुझसे
हरा पाएंगे कब इसको
मेरी हार से क्यों खुश होते हो तुम लोग
अपनी जीत का जश्न मानाना सीखो
हमने तो जंग में भी जश्न मनाये हैं
बार-बार गिरकर भी संभल जाते है
राह रोककर खड़े है अपने ही
कोई बात नहीं अर्जुन बनकर ही निकल जाएंगे
हम नहीं जानना चाहते उनको
जो मेरे राह में खड़े है
वो अपने हो या अनजाने
किसी की परवाह नहीं करते हम
खतरा सामने है, डटकर लड़ेंगे
हक़ अपना हम लेकर रहेंगे
आसमान में उन मुक्त उड़कर रहेंगे
जीवन जीने के लिए मिली हैं
अभावो में ही सही
इसे जी भर कर जीएंगे
गम को मुस्करा कर पिलेते है हम
खुशियों के स्वागत में दामन
फैला देते है हम
अपनों से ना सही गैरो से ही
प्रेम पा लेते हैं हम
ज़िन्दगी तन्हाइयों में क्यों गुज़ारे
गैरों के बीच ही अपना घर
बना लेते है हम।
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