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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शनिवार, 11 जनवरी 2020

गीले शिकवे

देश अपना है लोग अपने है
फिर क्यों गिला है आपको
देश तरक्की कर रहा है
विकास के नीत नयी
सीढ़ियां चढ़ रहा है
आज तक हम कागज़ों में उलझे थे
आम आदमी को हर जगह
कागज़ों की ही उलझन होती है
आम आदमी हर समय
कागज़ों के नाम पर ही लुटता हैं

देश अपना है लोग अपने है
फिर क्यों गिला है आपको
हम डिजिटल युग में कदम बढ़ा रहे है
हमें भी अपनी अलग पहचान बनानी है
नीत नए मिलने वाले ठेकेदारों को
अपनी पहचान बनानी है

देश अपना है लोग अपने है
फिर क्यों गिला है आपको
देश की खुशियों से क्या बैर है आपको
अमन और चैन को यू ना जलाइए
किसी मासूम को इतना मत तड़पाइए
देश आगे बढ़ रहा है
आप भी खुशियां मनाइये।

2 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चार्च आज सोमवार  (13-01-2020) को  "उड़ने लगीं पतंग"  (चर्चा अंक - 3579)  पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है 

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