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शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

प्रकृति की गोद में

कही धूंध थी, कही ठिठुरन थी
कही बर्फ था, कही ओस की कुछ बूंदे थी
हर तरफ मौसम में
एक अजीब सी उलझन थी
कुछ पौधे सीना तान कर
मौसम से लड़ रहे थे
कुछ ने तो जैसे
अपनी साँसे ही थाम ली थी

कही धूंध थी, कही ठिठुरन थी
हर तरफ धरती
सफ़ेद चादर में लिपटी थी
प्रकृति का अद्भुत दृश्य
मन को प्रफुल्लित कर रहा था
मन खिडकियां और दरवाजें खोल कर
उड़ने को कर रहा था

कही धूंध थी, कही ठिठुरन थी
मन मचल रहा था
जैसे कह रहा हो
देर क्यों करते हो
बढ़ चलो शामिल हो जाओ
उन खूबसूरत चिड़ियों के झूंड में
जिन्हें डर नहीं होता किसी अनहोनी का
जिन्हें भय नहीं होता जीने और मरने का

कही धूंध थी, कही ठिठुरन थी
तुम भी जी लो जीवन के कुछ क्षण
उलझन से दूर प्रकृति की गोद में
कही धूंध थी, कही ठिठुरन थी
जहां तक नज़रे जाती
हर्फ़ तरफ बर्फ ही बर्फ था। 

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