स्वभाव अपना इतना कोमल था
कि सब अपने - अपने से लगे
मन में चीनी सी मिठास थी
तो स्वभाव में गुड़ सी कोमलता
पर इस रुखरे संसार ने सब बेकार कर दिया
हर पग पर नई चोट खाई
हर ठोकर पर अरमान टूटे
हर रिश्ते ने तोहफ़े में कटुता दी
हर रिश्ता चोट दे कर इतराया
किसी ने बदकिस्मत तो किसी ने निकम्मा बताया
किसी ने भिखमंगा तो किसी ने चोर तक ठहराया
हद तो तब हो गयी जब
जिस घर को अरमान से सजाया
उसी घर ने घर तोड़ने का इलज़ाम हम पे लगाया
उस दिन वाकई अपने अंदर कुछ टूट सा गया
कुछ बिखर सा गया
बार - बार अपने आप से सवाल करते रहे
क्या रिश्ता इसी का नाम है
पर इस कोमल मन को फिर भी समझ न आया
कोई तो अपना होगा
कोई विश्वास करेगा
जब वक्त हमारा होगा
सब कोई अपना होगा
सबको सच्चाई दिखेगा
पर ऐसा क्या कभी होगा
जब सब कुछ अच्छा होगा?