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बैठे - बैठे

एक दिन बैठे - बैठे यूँ ही सोचती रही  क्या पाया क्या खोया हमने  कुछ मिले नए कुछ बिछड़े हमसे  कुछ शोहरत कुछ गुमनामी में  जीवन दिया ए काट  ना नी...

मंगलवार, 20 मई 2025

प्रतिक्रिया

अपनी प्यार पर प्रतिक्रिया देने में 

मैं हमेशा देर कर देती हूँ 

जब ये कहना था कि हमें भी तुमसे प्यार है 

तब भी मैं चुप ही रही 

अपने फ़र्ज़ को ही महत्व दिया 

ख़ामोशी से ही अपने प्यार को दफना दिया 

मैं ख़ामोश तब भी रही 

आज भी खामोशी में ही जिए जा रही हूँ 

मेरे फ़र्ज़ ने मुझे हमेशा रोक के रखा 

दिल चाहता था आसमानों में उड़ना 

वादियों में घूमना, प्रकृति को निहारना 

पर किस्मत को कहाँ था मंज़ूर 

पैरों में जकड़ी थी फ़र्ज़ की बेड़ियाँ 

 वक्त कम था अरमान बड़े थे 

इच्छाएँ सस्ती थी, ज़रूरते महंगी 

एक को चुना तो दूसरी हाथ से फिसल जाती 

दूसरे को पकड़ना चाहा तो 

पहली आँख से ओझल हो गयी 

इन सब में सामंजस्य बिठाते - बिठाते 

पता नहीं कब इच्छाएँ फ़र्ज़ में बदल गयी 

पता ही नहीं चला। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 24 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं