अपनी प्यार पर प्रतिक्रिया देने में
मैं हमेशा देर कर देती हूँ
जब ये कहना था कि हमें भी तुमसे प्यार है
तब भी मैं चुप ही रही
अपने फ़र्ज़ को ही महत्व दिया
ख़ामोशी से ही अपने प्यार को दफना दिया
मैं ख़ामोश तब भी रही
आज भी खामोशी में ही जिए जा रही हूँ
मेरे फ़र्ज़ ने मुझे हमेशा रोक के रखा
दिल चाहता था आसमानों में उड़ना
वादियों में घूमना, प्रकृति को निहारना
पर किस्मत को कहाँ था मंज़ूर
पैरों में जकड़ी थी फ़र्ज़ की बेड़ियाँ
वक्त कम था अरमान बड़े थे
इच्छाएँ सस्ती थी, ज़रूरते महंगी
एक को चुना तो दूसरी हाथ से फिसल जाती
दूसरे को पकड़ना चाहा तो
पहली आँख से ओझल हो गयी
इन सब में सामंजस्य बिठाते - बिठाते
पता नहीं कब इच्छाएँ फ़र्ज़ में बदल गयी
पता ही नहीं चला।
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 22 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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धन्यवाद
हटाएंVery beautiful
जवाब देंहटाएंThankyou
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 24 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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