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पहाड़

हमको बुलाये ए हरियाली  ए पहाड़ के आँचल  हमको छूकर जाये, बार-बार ये बादल  कभी दूर तो कभी पास ए  करते रहे ठिठोली  भोर - सांझ ये आते जाते  होठों...

रविवार, 8 जून 2025

बचपन को खिलने दो

बचपन को खिलने दो 

इनको खुश रहने दो 

थोड़ी मनमानी भी करने दो 

जी भी कर जी लेने दो 

अपनी ज़िद्द पूरी कर लेने दो 

बचपन को बचपन की बाहों में 

संवारकर आगे बढ़ने दो 

कभी इनकी बातों से 

तो कभी इनकी हरकतों से 

हमें भी खुश हो लेने दो 

इन्हे रूठने भी दो 

फिर मनाने का मज़ा भी लो

इनकी फूली हुई गाल 

और आँखों में गुस्सा 

भी लगता बड़ा प्यारा 

इनकी तुतलाती हुई बाते 

कर देती है हमें खुश 

इनके हँसते हुए चेहरे देख 

भूल जाती हूँ सब कुछ 

मेरे उपवन के है ये रंग - बिरंगे फूल 

हम ऐसे ही खुश रहे 

झूमते गाते रहे 

ये हमारे प्यारे नन्हे बच्चे 

हरदम मुस्कुराते रहे। 

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