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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

गुरुवार, 19 जून 2025

तुम से तुम तक

इस ज़िन्दगी की गीत में 

नित नए संगीत में 

हर घड़ी हर लम्हे में 

मेरी साँसों में मेरी धड़कन में 

हर जगह तुम साथ हो 


बीते 27 वर्षों में 

आदत तुम्हारी हो गयी 

हो मेरी आवाज़ तुम 

मेरी मौन में भी तुम ही हो 

हर ख़ुशी हर ग़म में तुम 


परछाई तेरी कब बन गयी 

कब चाहत से विश्वास में 

जीवन संगिनी से ख़ास तक 

ये सफ़र कब तै कर लिया 


धीरे - धीरे वक्त ने 

इतना सफ़र तै कर लिया 

हम साथ थे हम साथ हैं 


है हाथ माँ का सिर हमारे 

उनके सहारे हर कठिन 

मुश्किल को यूँ ही काट जायेंगे 

अभी तक पार उतरे है 

आगे भी पार जायेंगे। 

5 टिप्‍पणियां:

  1. हमराह मन मुताबिक़ हो तो ज़िंदगी का सफ़र सचमुच बहुत खूबसूरत लगता है।
    सुंदर रचना।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर सृजन, कहीं-कहीं वर्तनी की त्रुटियाँ खल रही हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. जब साथ हमसफर अपना होता है , हर कठिन डगर आसान हो जाती है । बहुत सुंदर भाव से सजी रचना ।

    जवाब देंहटाएं