माँ तुम मुझको आज दिला दो
सपनो वाली मेरी गुड़िया
वो मुझको सुन्दर लगती है
मेरे संग - संग वो हंसती है
मै जो गाऊं वो भी गाए
ऊछल - कूद हमको बहलाये
वो नन्ही प्यारी सी गुड़िया
मेरे मन को हर दम भाए
मेरी गुड़िया वो तुम ही हो
है वो तेरा ही प्रतिबिम्ब
जब भी तुम शीशा में देखो
खुद को खुद के ही संग पाओ
कहाँ से लाऊँ मैं वो गुड़िया
तुमको कैसे मैं समझाऊं
माँ तुम बुद्धू बन जाती हो
मुझको भी तुम बहकाती हो
मेरी प्यारी गुड़िया मुझसे
बार - बार क्यों छुप जाती है
माँ तुम उसको पास बुलाओ
क्यों तुमसे वो डर जाती है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 30 जून 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंबड़ी प्यारी बाल कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
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