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सपने

आँखों में सपने थे  ढेरो अरमान थे दिल में  कुछ अलग करने की  हमने भी ठानी थी  सपने बड़े बड़े थे  पर साधन बहुत सीमित थे  मंज़िल आँखों के सामने थी ...

शनिवार, 28 जून 2025

परछाई

माँ तुम मुझको आज दिला दो 

सपनो वाली मेरी गुड़िया 

वो मुझको सुन्दर लगती है 

मेरे संग - संग वो हंसती है 

मै जो गाऊं वो भी गाए 

ऊछल - कूद हमको बहलाये 

वो नन्ही प्यारी सी गुड़िया 

मेरे मन को हर दम भाए 

मेरी गुड़िया वो तुम ही हो 

है वो तेरा ही प्रतिबिम्ब 

जब भी तुम शीशा में देखो 

खुद को खुद के ही संग पाओ 

कहाँ से लाऊँ मैं वो गुड़िया 

तुमको कैसे मैं समझाऊं 

माँ तुम बुद्धू बन जाती हो 

मुझको भी तुम बहकाती हो 

मेरी प्यारी गुड़िया मुझसे 

बार - बार क्यों छुप जाती है 

माँ तुम उसको पास बुलाओ 

क्यों तुमसे वो डर जाती है। 

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