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शनिवार, 10 मार्च 2018

सांझ ढले

तुम पावन दिल तेरा निर्मल
गंगा की धारा सी कल-कल
चंचल निर्मल हवा बसंती
जीवन क्षण-क्षण परिवर्तित
रात गई फिर बात गई
पर अपने जज़्बात गए

शाम ढले जब आम तले
अपनों के जज़्बात मिले
कुछ ख़ास कहे कुछ आम कहे
कुछ खट्टी-मीठी याद बनी
वर्षों के यूँ विरह-मिलन के
रंग में हम सब डूब के यूँ सरोबार हुए
चाहत अपनी लबो पे लेकर
हम सबने कुछ ख़ास किए

खट्टी-मीठी यादों में जब
हमने सबको याद किए
सहज-शांत से जीवन में
पलती चिंगारी का एहसास किया
उस आम तले हम आज मिले
इन आमों के मंजर ने
वर्षों तक मेरे राह तके
हमने भी उनको याद किया
साँसे अनजान सी आहट पर
हर बार उचक कर मुड़ता था

पर राहें सुनी मिलती थी
आँखों में आंसूं भरकर के
चुपचाप रहे
हम शांत रहे
पर आम तले जब आज मिले
सारे गिले शिकवे भूले
हम आज मिले जब आम तले.

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