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प्रियतम

हे प्रियतम तुम रूठी क्यों  है कठिन बहुत पीड़ा सहना  इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा  निःशब्द अश्रु धारा बनकर  मन की पीड़ा बह निकली तब  है शब्द कहाँ कु...

बुधवार, 29 मई 2019

हौसला

हर पल बदलते रहे, रिश्तों के मायने
हर कदम में, राह काटों से भरी थी 
ज़िन्दगी अपनी तूफानी, सैलाबों में फँसी थी 
कब होती भोर, कब शाम ढल जाए 
मुझको न थी खबर, बस इतना था यकीन
इन सैलाबों से जूझ कर भी 
मैं एक दिन निकल जाउंगी पार 
ज़िन्दगी की राहों में
अक्सर गुमशुदा रह जाते है लोग 
हार कर थक कर, निराश हो जाते है लोग 
किस्मत को कोस कर ही, चैन पाते है लोग 
पर हमने तो अपनी राह बनाई है हर दम 
थोड़ा-थोड़ा कर के ही सही 
मंज़िलो की और कदम बढ़ाये है हमने 
ज़िन्दगी को एक मुकाम तक लाने की 
हिम्मत दिखाई है हमने 

राह ज़िन्दगी की आसान नहीं होती 
पर इसको आसान बनाने की हिम्मत 
दिखाई है हमने 
अंगारों भरी राह पर, बर्फ बिछाई है हमने 
सुनी आँखों में सपनो की तस्वीर
जगाई है हमने 
अँधेरी रातों में भी, खुशियों के बल्ब 
जलाये है हमने 

अपनों के बीच, संसार बसते है लोग 
हमने तो बेगानो के बीच ही 
अपना संसार बसाया है 
दामन में समेट ली वो सारी खुशियां 
जो अनजान शहर और अनजान लोगों ने 
बरसाई है हम पे 
हौसला ज़िन्दगी में हमेशा राह दिखाता है 
हौसला हर मुश्किल में ताकत बन जाता है 
हौसला रखना हर दम 
नामुमकिन चीज़ भी मुमकिन बन जाता है।

मंगलवार, 28 मई 2019

सफर ज़िन्दगी का

भटकता हूँ दर-दर कहाँ अपना घर है
जहां चैन से रात हमने गुज़ारी
सिपाही समर में उतर के चला हूँ
जहाँ हम गए हो वही के चले है
कहाँ से चले अब कहाँ आ गए है
दुनिया के हर रंग में हम ढले है
हो तप्ती सी गर्मी या बर्फीली चादर
चले बेधड़क हम समर में उतर कर

ज़िन्दगी भोर का उगता हुआ सूरज है
बचपन सुखद आश्चर्य का संगम है
जवानी दोपहरी की तपती हुईं रेत तो
बुढ़ापा शाम का वो छाँव है
जो दुखता भी है और
ज़िन्दगी की खट्टी-मीठी यादों
में रमता भी है

हो के  मायूस ना  यु शाम की तरह
ढलते रहिये
ज़िन्दगी एक भोर है सूरज की तरह
निकलते रहिये
ठहरोगे एक पाव पर तो
थक जाओगे
धीरे-धीरे ही मगर राह पर
चलते रहिये
ये सफर खट्टे-मीठे अनुभवों
का सफर है
बस इस राह पर मुस्कुरा कर
आगे बढ़ते रहिये।

शनिवार, 11 मई 2019

कल आज और कल

इन्ही रातों के दामन से सुनहरा
कल भी निकलेगा
ज़िन्दगी जीने के लिए मिली है
रोने  के लिए नहीं
उसे समझने में वक्त ज़ाया मत करो
सुन्दर सपनो का वक्त गुज़र जायेगा
अब तो बचपन से छूटे है
जवानी का दौर हैं 
आँखों में उमंग है
सपनो का तरंग हैं
अपने पास कुछ हो न हो
तुम मेरे साथ हो और मैं तुम्हारे
साथ हूँ
और हमें क्या चाहिए
आज हर तरफ महंगाई और मुफलिसी का
आलम है
खनखनाती सिक्को के इस दौर में
हाथ खाली हैं हमारे
हम अपने जज़्बातों को जोड़कर
पन्नों पर उतार तो दे
पर इन्हे लोगों तक पहुंचाएं कैसे
हर काम के लिए पैसो की ज़रुरत होती है
बगैर पैसे उन ज़रूरतों को निभाऊं कैसे
जज़्बात दिल में भरे पड़े हैं
पर खाली पेट उनको जुबां तक लाऊँ कैसे
वक्त बीतता गया उम्र ढलती गयी
अब तो चांदनी रात भी हमको
डराती है
अपने सुनहरे सपनो को जगाऊँ कैसे 
वक्त के ज़ुल्म-सितम को पल भर
में भुलाऊं कैसे?
मुकद्दर में क्या हैं ये हम नहीं जानते
पर जज़बात कुछ कर गुजरने की
आज भी काम नहीं है हम में
सोचती हूँ वक्त कितना रुलाएगा
कभी तो वो सूरज आएगा
जिस दिन अपने हिम्मत की जीत होगी.....

शुक्रवार, 10 मई 2019

मेरी अम्मा

जब अपनी गुड़िया को मैंने 
लिया गोद में पहली बार 
मुझको घूर रही थी तेरी
गोल-मटोल सी आँखे 
पूछ रही थी मानो मुझसे 
क्या तुम ही मेरी अम्मा हो 

मेरे अरमानो और सपनो की 
तुम ही भूल भुलैया हो 
शुरू तुम्ही से हूँ मैं मैया 
जीवन तुम पर अर्पित है 
तुम ही बिस्तर, तुम ही पालना 
तुम ही स्वर्ग की परियां हो 

तुम पर अपना 
खूब प्यार बरसाऊँगी 
मैं तेरा हर सपना अम्मा 
पूरा कर के दिखलाऊँगी

मेरी अम्मा तुझसे मेरा 
आज-अभी ये वादा हैं 
जब तेरी आँखें भीगेगी 
खुशियों की ही खातिर।