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शनिवार, 11 मई 2019

कल आज और कल

इन्ही रातों के दामन से सुनहरा
कल भी निकलेगा
ज़िन्दगी जीने के लिए मिली है
रोने  के लिए नहीं
उसे समझने में वक्त ज़ाया मत करो
सुन्दर सपनो का वक्त गुज़र जायेगा
अब तो बचपन से छूटे है
जवानी का दौर हैं 
आँखों में उमंग है
सपनो का तरंग हैं
अपने पास कुछ हो न हो
तुम मेरे साथ हो और मैं तुम्हारे
साथ हूँ
और हमें क्या चाहिए
आज हर तरफ महंगाई और मुफलिसी का
आलम है
खनखनाती सिक्को के इस दौर में
हाथ खाली हैं हमारे
हम अपने जज़्बातों को जोड़कर
पन्नों पर उतार तो दे
पर इन्हे लोगों तक पहुंचाएं कैसे
हर काम के लिए पैसो की ज़रुरत होती है
बगैर पैसे उन ज़रूरतों को निभाऊं कैसे
जज़्बात दिल में भरे पड़े हैं
पर खाली पेट उनको जुबां तक लाऊँ कैसे
वक्त बीतता गया उम्र ढलती गयी
अब तो चांदनी रात भी हमको
डराती है
अपने सुनहरे सपनो को जगाऊँ कैसे 
वक्त के ज़ुल्म-सितम को पल भर
में भुलाऊं कैसे?
मुकद्दर में क्या हैं ये हम नहीं जानते
पर जज़बात कुछ कर गुजरने की
आज भी काम नहीं है हम में
सोचती हूँ वक्त कितना रुलाएगा
कभी तो वो सूरज आएगा
जिस दिन अपने हिम्मत की जीत होगी.....

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