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गुरुवार, 26 मार्च 2020

कसौटी

अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण
ना क्षण में भंगुर, ना क्षण में भिहंगम
कदम धीरे-धीरे चले लक्ष्य के पथ
सहम कर ठिठक कर थोडा-सा रुक कर 
सभी के नज़रिए पर खुद को खड़ा कर
भींगे नयन और होठों पे मुस्कान
दिल में लिए दर्द के दासता को

अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण
सभी को सभी से मिलाने की जिद में
चेहरे पे सब के हँसी तैर जाये
गमे दिल में हम तो छुपाते रहेंगे
मगर क्या पता था
सभी मिलकर खंजर चुभाने लगेंगे
अपराध खुदका मिटाने की खातिर
हम आग के यूँ हवाले करेंगे

अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण
होते रिश्ते खड़े प्रेम की नीव पर
सीचते है सदा उसको विश्वास से
तोडना है तो क्या तोड़ डालो इसे
जोड़ने में तो वर्षों लगे थे हमें
बाग़ सुनी हुई पेड़ मुरझाए सब
इल्म जिसका तुझे हो न पाया कभी

अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण
आँधियों में अकेले खड़े अब रहो
कांटे बोये थे तुमने फल कहाँ पाओगे
अपनों को अपनों से यूं करके जुदा
चैन किसको मिले जो अब तुम पाओगे

अर्पण समर्पण ये मेरा है दर्पण
काटें बोने से मिलते है कांटे सदा
प्रेम जो बोएगा प्रेम वो पायेगा
प्रेम में कोई अपना पराया नहीं
प्रेम का दायरा सारा संसार है
नफरतों का नहीं कोई स्थान है
प्रेम जीता है हरदम आगे जीतेगा भी। 

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