फिर भी हमको चलना होगा
चाहे बाधाएं कितनी आये
छाये प्रलय की घोर घटा पर
सांस थामकर चलना होगा
जीवन के हर कड़वे घूंट को
हृदय थामकर पीना होगा
घोर प्रलय की इस बेला को
ह्रदय थामकर सहना होगा
हर ओर मची इस क्रंदन को
भर नयन नीर में बहना होगा
माँ के ममता के आँचल को भी
इस करुण पलों को सहना होगा
घर टूटे कितने बिखर गए
कितने अपनों से बिछड़ गए
है आस अभी बांकी अब तो
हे दयानिधि कुछ कृपा करो
हम सांस थामकर बैठे हैं
इसमें अब बाधा और न दो
है बहुत हुआ अब और नहीं
जीवन धारा निर्बाध करो
हे प्रभु आप हो देख रहे
तो जीवन नैया पार करो
सब ताक रहे हैं आस प्रभु
अब और नहीं तुम मौन धरो।
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंBest 40 Small Business Ideas in India
thanks
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