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प्रियतम

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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

जीवन की डूबती सांसे

जीवन कितनी ठोकर मारे
फिर भी हमको चलना होगा
चाहे बाधाएं कितनी आये 

छाये प्रलय की घोर  घटा पर 
सांस थामकर चलना होगा 

जीवन के हर कड़वे घूंट को 
हृदय थामकर पीना होगा 

घोर प्रलय की इस बेला को 
ह्रदय थामकर सहना होगा 

हर ओर मची इस क्रंदन को 
भर नयन नीर में बहना होगा 

माँ के ममता के आँचल को भी 
इस करुण पलों को सहना होगा 

घर टूटे कितने बिखर गए 
कितने अपनों से बिछड़ गए 

है आस अभी बांकी अब तो 
हे दयानिधि कुछ कृपा करो 

हम सांस थामकर बैठे हैं 
इसमें अब बाधा और न दो 

है बहुत हुआ अब और नहीं 
जीवन धारा निर्बाध करो 

हे प्रभु आप हो देख रहे 
तो जीवन नैया पार करो

सब ताक रहे हैं आस प्रभु 
अब और नहीं तुम मौन धरो।   

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