हे प्रियतम तुम रूठी क्यों
है कठिन बहुत पीड़ा सहना
इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा
निःशब्द अश्रु धारा बनकर
मन की पीड़ा बह निकली तब
है शब्द कहाँ कुछ कहने को
धीरज धरने का धैर्य कहाँ
अपने बस में कुछ आज नहीं
मन को कैसे बहलाऊँ मै
कैसे समझाऊं तेरे बिन
जीवन पथ पर बढ़ जाऊँ मै
तेरा कुढ़ना तेरा चिढ़ना
सब आज मुझे तड़पाता है
कहता है दिल कोई बात नहीं
तुम लौट के फिर आ जाओ ही
हम ऐसे ही जी लेते जैसे जीते थे अब तक
कोई गिला कोई है शिकवा
है आज नहीं मेरा तुमसे
वो सुबह शाम वो रात कहाँ
सब सुना - सुना आज यहाँ
मैं भूल गया जीना तेरे बिन
हँसना और रोना तेरे बिन।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार 06 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार 06 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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