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गुरुवार, 12 अगस्त 2021

मायूसी

रिश्तों में भी कुछ नए रंग भरने लगे हैं
बर्फ की परतें  भी पानी बन पिघलने लगी है

जीवन रेत  बन मुट्ठियों से निकलने लगा है 
खुशियां आसमान में बादल सा खोने लगी है 

चाँदनी रात भी अब कुछ-कुछ डराने लगी है
दिन के उजाले में भी अँधेरा नज़र आने लगा है 

शादी के मंडप में भी सूनापन छाने लगा है 
दावत पर भी भी डर का ही साया है 

आजकल बचपन भी कितना खामोश रहने लगा है 
बागों में खेलते बच्चे कैदियों सा खिड़की से झांकते नज़र आने लगे हैं 

हर तरफ़ खौफ़ की आहट  है 
दिल में मायूसी और नजरों में घबराहट है 

खुद कि परछाई भी खुद को डराने लगी है 
जाने कब सवेरा आएगा 

दिन को खिलखिलाती धुप और 
रातों को चाँदनी सुकून देकर जाएगी.  

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. यशोदा जी आपका बहुत-बहुत आभार. मैं जरूर आउंगी.

    जवाब देंहटाएं
  3. यथार्थ सृजन।
    आशा का दामन न छोड़े भोर को होने से रोके ऐसी कोई रात नहीं होती।
    सस्नेह। कोई भी

    जवाब देंहटाएं