हम गिन ना सके बंदगी में
हम झुके थे किसी की ख़ुशी में
पर गम साथ लेके उसके हिस्से से
ना जाने कब आगे को चल दिए
मुड़कर कभी देखा नहीं
जख्म गिनना सिखा नहीं
रह लंबी है अपनी
सफ़र मुश्किलों से भरा
गर जख्म गिनने लगे
वक़्त काटना मुश्किल हो जाएगा
जख्म शोला बना जख्म शबनम बना
जख्म के ताने-बाने से जीवन बना
जख्म खाए है कितने
खुद के पैरों पर चलने की खातिर
गिरते -गिरते चलना सीखा
गिर-गिर कर फिर उठना सीखा
फिर कुछ आगे बढ़ना सीखा
लक्ष्य की राह पर बढ़ना सीखा
सूख-दुःख का मोल समझना सीखा
गम और खुशियों को जीना सीखा
जख्म ने जीवन को समझाया
जीवन का हर मंत्र सिखाया.
बस यही ज़िन्दगी है ....चलते रहो सुबह शाम ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएं