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शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

जख्म

जख्म इतने दिए जिन्दगी ने
हम गिन ना सके बंदगी में
हम झुके थे किसी की ख़ुशी में 
पर गम साथ लेके उसके हिस्से से 
ना जाने कब आगे को चल दिए 
मुड़कर कभी देखा नहीं 
जख्म गिनना सिखा नहीं 

रह लंबी है अपनी 
सफ़र मुश्किलों से भरा 
गर जख्म गिनने लगे 
वक़्त काटना मुश्किल हो जाएगा 

जख्म शोला बना जख्म शबनम बना 
जख्म के ताने-बाने से जीवन बना 
जख्म खाए है कितने 
खुद के पैरों पर चलने की खातिर

गिरते -गिरते चलना सीखा 
गिर-गिर कर फिर उठना सीखा 
फिर कुछ आगे बढ़ना सीखा 
लक्ष्य की राह पर बढ़ना सीखा 

सूख-दुःख का मोल समझना सीखा 
गम और खुशियों को जीना सीखा 
जख्म ने जीवन को समझाया 
जीवन का हर मंत्र सिखाया.      

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