कभी सपना तो कभी हक़ीकत की चाह में
कभी समतल तो कभी पथरीली राह में
चल रहे थे अकेले
कुछ अजनबियों के साथ में
परिवार लम्बा-चौड़ा था हमारा
पर भीड़ में हमेशा मैं अकेला ही खड़ा था
प्यार सबको था हमसे पर जब भी हमारी बारी आई
नफ़रत ही हिस्से में हरबार मेरे आई
एक दिन अचानक मौत से सामना हो गया हमारा
मौत ने पुकारा लेलो आलिंगन हमारा
मिल साथ-साथ चलेंगे
न तुम अकेले रहोगे और न मैं अकेला रहूँगा
हमने भी मौका देख के तपाक से पूछ लिया
भाई मेरी छोड़ो तुम कैसे हो अकेले
ये मुझको जरा समझाना
तुम्हारी तांडव ने तो आजकल सबको है डराया
भाई मेरे तुम भी हो कितने भोले-भाले
तुम जिन्दगी मैं मौत हममे फर्क बस है इतना
वर्ना तुम भी हो अकेले और मैं भी हूँ अकेला
तुम यहाँ रो रहे हो और मैं वहाँ रो रहा हूँ .
❤️❤️
जवाब देंहटाएं