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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

मौत से आलिंगन

जिंदगी के भागदौड़ में
कभी सपना तो कभी हक़ीकत की चाह में
कभी समतल तो कभी पथरीली राह में 
चल रहे थे अकेले 
कुछ अजनबियों के साथ में 

परिवार लम्बा-चौड़ा था हमारा 
पर भीड़ में हमेशा मैं  अकेला  ही खड़ा था 
प्यार सबको था हमसे पर जब भी  हमारी बारी आई
नफ़रत ही हिस्से में हरबार मेरे आई 

एक दिन अचानक मौत से सामना हो गया हमारा 
मौत ने पुकारा लेलो आलिंगन हमारा 
मिल साथ-साथ चलेंगे 
न तुम अकेले रहोगे और न मैं अकेला रहूँगा 

हमने भी मौका देख के तपाक से पूछ लिया 
भाई मेरी छोड़ो तुम कैसे हो अकेले 
ये मुझको जरा समझाना 
तुम्हारी तांडव ने तो आजकल सबको है डराया 

भाई मेरे तुम भी हो कितने भोले-भाले 
तुम जिन्दगी मैं मौत हममे फर्क बस है इतना 
वर्ना तुम भी हो अकेले और मैं भी हूँ अकेला 
तुम यहाँ रो रहे हो और मैं वहाँ रो रहा हूँ .
  

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